वर्तमान में Electoral Bond का मुद्दा काफी ज्यादा सुर्ख़ियों में है, जिसके पीछे का कारण सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संविधान पीठ द्वारा Electoral Bond की बिक्री पर रोक लगाना है। दरअसल SBI, सुप्रीम कोर्ट के समक्ष यह जानकारी नहीं दे सका कि 2 अप्रैल 2019 के बाद से Electoral Bond को किसने ख़रीदा और किसी पार्टी के पास कहाँ से फंडिंग आई। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के ढीले-ढाले रवैये के चलते सुप्रीम कोर्ट ने SBI को सख्त लहजे में आगाह भी किया है। हालाँकि इस मामले पर जल्द से जल्द सुप्रीम कोर्ट कोई कड़ा निर्णय ले सकता है, लेकिन यह मामला देश की चुनावी प्रकिया में गड़बड़ी की ओर इशारा करता है। हालाँकि देश की सर्वोच्च न्याय संस्था इस तरह के किसी भी गडबडी को बरदास्त करने के मुड में नहीं दिख रही और SBI जैसे बड़े बैंक को आड़े हाथों लेने के लिए पूरी तरह तैयार दिख रही हैं।
यदि राजनीतिक दल Electoral Bond के बजाय क्रिप्टोकरेंसी के रूप में फंडिंग स्वीकार करने लगे तो इसके कई सकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे। दरसल क्रिप्टोकरेंसी के माध्यम से वे लोग भी फंडिंग के लिए आगे आ सकते हैं, जो ट्रेडिशनल बैंकिंग सिस्टम से बहार है। इससे व्यापक स्तर पर नागरिकों की पॉलिटिकल फंडिंग में भागीदारी बढ़ेगी, जिससे फाइनेंसियल इन्क्लूजन को बढ़ावा मिलेगा। खास बात यह है कि क्रिप्टोकरेंसी के माध्यम से ट्रांजेक्शन सीधे फंडिंग देने वाले और राजनीतिक दल के बीच हो सकता है, जिसे किसी थर्ड पार्टी की जरुरत नहीं होगी। यह डोनेशन प्रोसेस को स्ट्रीमलाइन कर सकता है, साथ ही साथ ट्रांजेक्शन की लागत को भी कम कर सकता है। जिसके माध्यम से फंड का अधिक कुशल उपयोग सुनिश्चित हो सकता है। क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग ग्लोबल स्तर पर होने के चलते राजनीतिक दल दुनियाभर के सपोर्टर से डोनेशन प्राप्त कर सकते हैं। इससे पॉलिटिकल मूवमेंट्स की ग्लोबल रीच बढ़ सकती है। यानी क्रिप्टोकरेंसी अंतरराष्ट्रीय सहयोग की भावना को बढ़ा सकती है।
Coin Gabbar की माने तो ट्रेडिशनल बेंकिंग सिस्टम की तुलना में क्रिप्टोकरेंसी ट्रांजेक्शन आमतौर पर तेज होते हैं। तेजी से फंड मिलने से राजनीतिक दलों को लाभ हो सकता है, जिससे वे अपने इलेक्शन कैम्पेन की जरूरतों पर तत्काल प्रभाव से प्रतिक्रिया दे सकते हैं। इसके साथ ही क्रिप्टोकरेंसी ट्रांजेक्शन, फंड डोनेट करने वाले डोनर्स को प्राइवेसी प्रदान करता है, जिससे उनकी जानकारी किसी के भी समक्ष उजागर नहीं हो सकती। ऐसे में Electoral Bond की तुलना में क्रिप्टोकरेंसी में राजनीतिक दलों को फंडिंग मिलना एक इनोवेटिव तरीका होगा।
आने वाले समय में भारत में लोकसभा चुनाव तो, अमेरिका में प्रेसिडेंट इलेक्शन होने वाले हैं। जिसमें क्रिप्टोकरेंसी डोनेशन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हालाँकि भारत में अभी भी राजनीतिक दल फंडिंग के लिए Electoral Bond का उपयोग करते हैं। लेकिन अमेरिका में होने वाले चुनावों में क्रिप्टोकरेंसी में डोनेशन का चलन शुरू हो गया है, जिसकी शुरुआत राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार Robert F. Kennedy Jr. (RFK Jr.) ने की थी। Kennedy Jr. अपने चुनाव के कैंपेन डोनेशन में लोकप्रिय क्रिप्टोकरंसी Bitcoin को स्वीकार करने की घोषणा कर चुके हैं। भले है RFK Jr. पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने इलेक्शन कैंपेन डोनेशन में क्रिप्टोकरेंसी को स्वीकार करने की बात कही हो, लेकिन इसके बाद कई अन्य उम्मीदवार ने इस पहल को अपने चुनावी कैम्पेन के साथ में जोड़ा। वर्तमान में अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव क्रिप्टो सपोर्टर और नॉन क्रिप्टो सपोर्टर के बीच बट गया है।
भारत में वर्तमान में राजनीतिक दल चुनाव में फंडिंग के लिए SBI के Electoral Bond का उपयोग करते हैं, जिसको लेकर वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा है। वहीँ रही बात क्रिप्टोकरेंसी की तो, भारत में क्रिप्टोकरेंसी को लेकर अभी भी रेगुलेटरी डिफिकल्टी बरकरार है। वर्तमान में दुनिया भर के देशों के साथ में भारत क्रिप्टो रेगुलेटरी फ्रेमवर्क के निर्माण की दिशा में काम कर रहा है। जिसको लेकर सभी देश अपनी सहमती भी दर्ज करा चुके हैं, लेकिन अभी तक यह अपडेट नहीं आया है कि इस रेगुलेटरी फ्रेमवर्क का निर्माण कब तक हो जाएगा। लेकिन उम्मीद की जाती है कि आने वाले भविष्य में क्रिप्टोकरेंसी भारत में लीगल टेंडर की तरह उपयोग की जा सकती है। जिसके बाद ही भारतीय राजनीतिक दल Electoral Bond के स्थान पर क्रिप्टोकरेंसी में डोनेशन स्वीकार करने के बारे में विचार कर सकते हैं।
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